पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( ३५५ ) वह बहुत बड़ा विवेकशील था और उसके विचार इस विषय में परम धार्मिक थे। उसके उत्तराधिकारी भीधार्मिक विचारोंवाले ही थे । इसलिये पतंजलि और अर्थशास्त्र का यह कथन या तो चंद्रगुप्त के संबंध मे होगा और या बिंदुसार के संबंध में; और कौटिल्य ने इन दोनों ही राजाओं के समय में राजसेवा की थी। सनातनी विचारोंवाले ब्राह्मण साहित्य तथा उसके विपरीत नए विचारोंवाले जैन और बौद्ध साहित्यों से भी यही कहा गया है कि कौटिल्य चंद्रगुप्त का मंत्री था। बौद्ध और जैन ग्रंथों में यही कहा गया है कि वह भारी दुष्ट या लुच्चा था, सिक्कों को खराब करनेवाला और धन-लोलुप था, राजाओं को परास्त किया करता था और लोगों की हत्या किया करता था, आदि आदि। इसके विपरीत पुराणों से यह सिद्ध होता है कि वह एक बहुत ही सुयोग्य मंत्री था। भला किसी कल्पित व्यक्ति के गुण-दोषो के संबंध में इस प्रकार की विपरीत और विरोधी बातें कैसे कही जा सकती हैं ? हमारी समझ मे तो उसकी यह निंदा और उसका भद्दा गोत्र नाम ये दोनों ही उसके ऐति- हासिक अस्तित्व के प्रमाण हैं। यदि हम अर्थशास्त्र को ध्यानपूर्वक देखें, तो हमे पता चल जायगा कि क्यों सनातनी साहित्य में उसकी इतनी प्रशंसा की गई है और क्यो बौद्ध तथा जैन ग्रंथो में उसकी इतनी निंदा की गई है। वह सनातनियों के विरोधियों का दमन करता था; और इसी लिये वे उसे खराब कहा करते थे।