पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३८७

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(३५६) (६) यदि चंद्रगुप्त के अस्तित्व के संबंध में पुराणों का कथन ठीक उतरता है, तो फिर कौटिल्य के संबंध में भी हम उन्हें क्यों न प्रामाणिक समझे ? और यदि कौटिल्य किसी समय वर्तमान था, तो फिर हम क्यों न यह बात मान लें कि यह ग्रंथ उसी का लिखा हुआ है ? और वह भी विशेषतः ऐसी दशा मे जव कि ग्रंथकर्ता से संबंध रखनेवाला ग्रंथ का अंतिम से पहला श्लोक कामंदकवाली प्रति में उपस्थित था और उसने अपनी प्रस्तावना में उसका अन्वय किया है। (जाली ने भी विना कोई कारण बतलाए हुए ही यह माना है कि उस श्लोक की रचना भी उसी समय हुई थी, जिस समय स्वयं ग्रंथ की रचना हुई थी। (७) यदि यह ग्रंथ वात्स्यायन से भी पहले उपस्थित था और कामंदक ने इसे कौटिल्य का रचा हुआ बतलाया है, तो जो व्यक्ति इसे किसी दूसरे व्यक्ति का रचा हुआ बतलाता है, उसी व्यक्ति पर यह प्रमाणित करने का भार आ पड़ता है कि यह ग्रंथ दूसरे का रचा हुआ है और साथ ही यह प्रमाणित करने का भार भी उसी पर होता है कि अर्थशास्त्र में दिए

  • रचयिता का नाम बतलानेवाला पहला श्लोक दंडीवाली प्रति में

भी था, जिसने उससे ठीक पहले ग्रंथ का परिमाण दिया है और कहा है कि इस ग्रंथ की रचना मौर्य के लिये विष्णुगुप्त ने संक्षिप्त रूप में की थी; और उसने अर्थशास्त्र के प्रायः वही शब्द उद्धत किए हैं जो उस श्लोक में और उससे पहलेवाले वाक्य में दिए गए 1