( ३५८) हो सकता था जो महाविसि (= वेद का महावृष) के आयात और निर्यात (अर्थशास्त्र २.११.), अफगानिस्तान (Arachosia) की दाख की शराब मृद्रो, शिवि के नाप और तौल के उप- करणों, एक ही समय मे मेकला और मगध, एक ही साथ उत्त- रापथ और दक्षिणापथ का ध्यान रख सकता था और जो गंधार देश को बदनाम करने के लिये ( पाटलिपुत्र से ही) दंड की व्यवस्था कर सकता था (देखो पहले पृ० २५७ का दूसरा नोट)। और अर्थशान में जितना अधिक आर्थिक तथा सैनिक ज्ञान भरा पड़ा है, वह सब ज्ञान किसी बहुत उच्च कोटि के मंत्री को ही हो सकता था। स्त्रियों को भिक्षुणी बनाने के लिये और ऐसे पुरुषों को जिनके परिवार का भरण-पोषण करनेवाला कोई न बच रहता हो, भिक्षु या साधु बनाने के लिये दंड की व्यवस्था (२.१.) केवल पहले से सम्राटों के आरंभिक मौर्य शासन में ही हो सकती थी। किसी राजा की अविवाहिता कन्या को किसी राजकुमार के लिये ले लेना (जब कि शुंग काल में ही अर्थात् मानव धर्मशास्त्र में नियोग तक की निदा की गई है), जिन महाकाव्यों का हमें ज्ञान है, उनसे भिन्न महा- काव्यों का ज्ञान आदि आदि बातें यह सूचित करती हैं कि इस ग्रंथ की रचना बहुत पहले और शुंग काल से भी पूर्व हुई थी। पृ०७.-ईसवी चौथी और पाँचवी शताब्दी के अंघ और कामंदकीय का रचना काल ।
- मैकडॉनल और कीथ ५.१.२.१४२.३४६.