पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/४०

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(६) पतन-काल के बने हुए हैं। इन्हें हम पुराणों के राजनीति- विज्ञान-संबंधी अंशों के वर्ग मे रख सकते हैं। निबंधकारों और पुराणों में कोई मौलिकता नहीं है। पुराणों में राजनीति, ई० छठी और स पुराणों मे कुछ प्रसिद्ध अंधकारों के ग्रंथों के कतिपय अध्यायों का उद्धरण मात्र है। शताब्दी उदाहरणार्थ अग्नि पुराण में पुष्कर नामक एक ग्रंथकार के ग्रंथ से अनेक बातें लेकर रख दी गई हैं। मुसल- मानी शासन-काल के हिंदू न्यायाधीशों के संबंध में जान पड़ता है कि उनका सब से अधिक जोर सामग्रो संग्रह करने की ओर था; और उनकी रचनाओं का सबसे अधिक महत्व इसी बात में है कि उनमें ऐसे ऐसे आचार्यों के ग्रंथों के उद्धरण पाए जाते हैं जिनका और किसी प्रकार पता ही नहीं चलता। इसके अतिरिक्त पद्धति के संबंध की जो बहुत सी बातें प्राचीन काल से चली आती थी, वे सब भी उन्होंने धर्मग्रंथो मे राज- देखी सुनी थी और वे उनके संबंध मे नीति, ई० पू० ४०० से ई०प० ५०० तक प्रत्यक्ष जानकारी रखते थे। मुख्यत: इस विषय का विवेचन करनेवाले ग्रंथों के उपरांत दुसरी महत्वपूर्ण और उत्तम सामग्री हमे धर्म-शाहों के उन अध्यायो मे मिलती है जिनमे राजधर्म का विवेचन किया गया है; और उनसे शासन-संबंधी ऐसे नियमों का उल्लेख है, जिनकी व्याख्या धर्म-शाललारों ने की है। पही वात मत्स्य पुराण के अध्याय २१५ -२७ के संबंध में भी है।