पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

(३६०)


पूर्वक सिद्ध कर दिया है कि कामदक के ग्रंथ से भवभूति परि- चित था। वह कामंदक को केवल जानता ही नहीं था, बल्कि उसने उसके संबंध से ऐसे ढंग से लिखा है जिससे सूचित होता है कि उसके पाठक भी, बुद्धरक्षित और अवलोकित की भाॅति, कामंदकी से भी बहुत भली भाॅति परिचित थे, उसे मान्य ग्रंथ समझते थे और उसकी बातें अच्छी तरह समझ सकते थे। कासंदक ने अपना ग्रंथ भवभूति (आठवीं शताब्दी का प्रथमार्द्ध) से कुछ शताब्दियाँ पूर्व प्रकाशित किया होगा । महा- भारत के उल्लेखों से सिद्ध होता है कि कामंदक कम से कम ईसवी पाॅचवीं शताब्दी में हुआ होगा। उसकी इससे पहले की सीमा संभवतः तंत्राख्यायिका है, जो कामंदक से परिचित नहीं है; अर्थात् तंत्राख्यायिका का समय कामंदक से कुछ पूर्व का है। अर्थशाख और कामंदक के बीच में समय का बड़ा अंतर है; क्योंकि अर्थशास्त्र में के कई विषयों को कामंदक ने पुराना समझकर छोड़ दिया है; और कामदक ने कई ऐसे ग्रंथों तथा ग्रंथकारों का उल्लेख किया है, जिनका अर्थशास्त्र में कहीं उल्लेख नहीं है।

गुप्त काल मे चंद्रगुप्त मौर्य की स्मृति फिर से जाग्रत होती है, क्योंकि उस काल में राजपरिवार के माता-पिता चंद्रगुप्त के नाम पर ही तीन बार अपने पुत्रों के नाम रखते हैं। गुप्त राजवंश के एक चंद्रगुप्त के समय में विशाखदत्त ने जो नाटक लिखा था, उसमें उसने चंद्रगुप्त मौर्य की तुलना विष्णु से की