पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३९३

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(३६२) 1 पृ०६-पुष्कर। विष्णुधर्मोत्तर (२) के राजनीतिविज्ञान संबंधी कथोपकथन में भी पुष्कर का नाम आया है। संभवतः यह कोई कल्पित और आदर्श पुरुष था; वास्तव में कोई ग्रंथकार नहीं था। पृ० ११.-देशी भाषाओं के ग्रंथ । हितोपदेश और पंचतंत्र के आधार पर लल्लूलाल ने हिंदी में राजनीति नामक एक ग्रंथ लिखा था। पृ०१६-गाँवों पर जुरमाना । देखो वशिष्ठ धर्मसूत्र ३.४.- अव्रता हनधीयाना यत्र भैतचराद्विजाः । तं ग्राम दंडयेद्राजा चोरभक्तप्रदो हि सः॥ पृ०२७.-न सासभा। यह नारद ( १.१८.) में भी दिया हुआ है। पृ०३३.-गया। वेदों में गण शब्द "सैनिकों का समूह" के अर्थ में आया है। यथा- नातं जातं गणं गणम् । (ऋग्वेद ३.२६.६.) पृ० ६३.-प्रजातंत्रों के अंक और लक्षण । स्वयं लब्छ शब्द भी लक्ष से हो सकता है, जिसे ग्रियर्सन ने Spontaneous nasalisation कहा है (ज० रा० ए० सो० १९२२. पृ. ३८१. पादटिप्पणी ।)