पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३९४

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( ३६३ ) 'अंक' के लिये अर्थशास्त्र ५.३, पृ० २४७. में देखा- कृत-नरेंद्राकम् शस्त्रावरणमायुधागारम् प्रवेशयेत् । पृ०८२.-फैसलों का लिपिबद्ध होना (नजीरों की पुस्तक)। जातक में भी इस प्रकार की नजीरों की पुस्तक का उल्लेख है। देखो जातक ( ३.२८२.) जिसमे इस बात का उल्लेख है कि न्यायालय की नजीरें लिखी जाती थीं। “विनिच्चये पोत्थकम् लेखापेत्वा ।" कदाचित् वशिष्ठ भी १६.१०. में नजीरों का ही उल्लेख करता है। पृ०८२.-अष्टकुलक। देखो Epigraphic Indica १५.१३६. जिसमें बतलाया गया है कि अष्टकुल-अधिकरण नगर की पंचायत या प्रबंध समिति के अधिकारी या अफसर होते थे; और आगे चलकर इस ग्रंथ के दूसरे भाग का परिशिष्ट घ तथा जानपद और पौर संबंधी प्रकरण । पृ० ८४.-लेच्छई। रिक्ष से लिच्छ भी हो सकता है और लिक्ख भी; पर लिच्छवि (विशेषतः जैन हिज्जे लेक्खइ) के लिये हम ऐसे रूप पाते हैं जिनसे यह सूचित होता है कि इसका मूल लिक्षु से है, जिसका अर्थ लीक (क्षुद्र कीट ) है। मनु का दिया हुआ निच्छवि रूप किसी प्रांतीय बोली मे का होगा; और इस प्रकार की प्रवृत्ति विशेषतः पूर्वी भारत में होती है। पृ०६३ का दूसरा नोट-शवति ।