पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३९६

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( ३६५) पृ० १३१.-का पहला नोट । कौणिद और कनेत । सर जार्ज ग्रियर्सन का भी यही मत है कि कनेतों को ही कुणिन्दों का प्रतिनिधि या उत्तराधिकारी नहीं समझना चाहिए ( Linguistic Survey of India खंड ६, पृ० ६. नोट)। कनेत रूप ही शुद्ध है और मैंने स्वयं सिपी (शिमला) मे इस बात की जॉच की थी। पृ० १४१.-वाहीकों का शारीरिक संघटन । वाहीकों की शारीरिक गठन के संबंध मे हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनके सनातन धर्म के परित्याग और नवीन धर्म ग्रहण करने के कारण कदाचित् वे लोग महायान संप्रदाय के बौद्ध हो गए थे। महाभारत ने वाहीकों की बहुत निदा की है; और उनके संबंध में एक व्यंग्यपूर्ण गीत उद्धृत किया है, जिसमें यह बतलाया गया है कि उनकी स्त्रियाँ भारी डील डोलवाली होती थी और मांस उनका प्रिय खाद्य पदार्थ था। "इस शाकल नगर में मैं कब फिर वाहीकों का गीत गाऊँगा और फिर कब मैं सुंदर वस्त्र धारण करके गौर वर्ण की विशाल शरीरवाली स्त्रियों के साथ मिलकर पकरी, सूअर, गौ, मुर्गे, गधे और ऊँटों का ढेर सा मांस खाऊँगा ? जो लोग मांस नहीं खाते, उनका जीवन व्यर्थ है।" "इस प्रकार वहाँ के निवासी मद्यपान करके गाते हैं। ऐसे लोगों में धार्मिक भाव किस प्रकार पाया जा सकता है ?" >