पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/३९८

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पृ०२४६.-यौधेय सिक्कों पर का लेख भगवतो खामिन(:)। शुद्ध लेख ब्रह्मण्य-देवस्य (C. CI. M. १८१-८२. 0. A. I. पृ० ७८.) जान पड़ता है। ब्रह्मण्य किसी यौधेय राजा का नाम नहीं है (रैप्सन; जरनल रायल एशियाटिक सोसाइटी; १६०३. पृ० २६१.), बल्कि देवता का नाम है, कुछ सिक्कों में जिसके छः सिर दिखलाए गए हैं और जो कार्तिकेय हैं. जैसा कि स्वयं रैप्सन ने निश्चित किया है। पृ०२५३.-मालव सिक्के । एक ही स्थान पर कई ऐसे सिक्के पाए गए हैं जिन पर एक ही एक नाम मिलता है और जिन पर साधारणतः मालव गण का कोई लेख नहीं मिलता। ऐसे सिक्के मालवों के बतलाए जाते हैं (C. O I. M १६३.१७४-१७७.) । कदा- चित् वे उस राज्य या शक्ति के सूचक हैं जिसने मालवों को दबा लिया था। वे नाम भी एक प्रकार से पहेलो ही हैं। उदाह- रणार्थ मरज, जमपय, पय, मगज । ये सब नाम दूसरे शब्दों के संक्षिप्त रूप जान पड़ते हैं। जैसे मरज= महाराज मिलाओ महाराय (पृ० १७७.)। जम और यम शब्द प्रायः देखने में आते हैं (पृ० १७४. १७६. जमपय और तब फिर केवल पय)। मपोजय, मपय और मगज (पृ० १७५.१७६.) कदाचित महा (महाराज ) जय, मा ( महाराज) पय और म (महाराज) गज हैं । इसी प्रकार मगजस 'म (महाराज) गन (गजस), गज गजव = गजप, मगो (इसे ग पढ़ना चाहिए ) जव = म.