पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/४१

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(१०) $ ४ इस अवसर पर हमें मध्य युग के एक और प्रकार के प्रथों को भी भूल न जाना चाहिए। उनमें से एक छोटा सा ग्रंथ बृहस्पतिसूत्र है जिसका संपादन आरंभिक मध्य युग अभी हाल में डाकुर एफ० डब्ल्यू० थामस के ग्रंथ ने किया है। यह भी सूत्रों में रचा हुआ अर्थशास्त्र-संबंधी ग्रंथ है। यद्यपि इसके अनेक अंशों की रचना निस्संदेह बहुत प्राचीन सामग्री के आधार पर हुई है, तथापि अपने वर्तमान रूप मे वह मध्य युग की ही रचना मानी जा सकती है। जैसा कि हम आगे चलकर बतलावेंगे, इससे हमें बहुत सी महत्वपूर्ण बातों का पता चलता है। इसी प्रकार ईसवी दसवीं शताब्दी के सोमदेव का रचा हुआ नीति- वाक्थामृत भी सूत्रों में ही है। इसमें प्राचीन प्राचार्यों की अनेक उत्तम बातों का संग्रह है। ये सूत्र साधारणतः उद्ध- रण मात्र हैं जिन्हें इस जैन प्रथकार ने “राजनीतिक सिद्धांतों का अमृत" बतलाया है, और उसका यह कथन बहुत कुछ ठीक भी है।

  • सोमदेव ने मनु का एक सूत्र उद्धृत किया है, जिसके द्वारा उसने

यह दिखलाया है कि उनका मनु धर्मशास्त्र का कर्ता स्वायंभुव मनु नहीं है। उसने मानव धर्मशास्त्र से यह उद्धरण दिया है- यदाह वैवस्वतो मनुः । उञ्छषड्भागप्रदानेन वनस्था अपि तप- स्विनो राजानं संभावयंति। तस्यैव तद्भूयात् यस्तान् गोपायति । इति । नीतिवाक्यामृत ६ ।