पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/४५

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(१४) एकचित्त होकर एक ही व्रत तथा उद्देश्य (समानं व्रत सह चित्तमेषाम् ) रक्खें। इससे प्रकट होता है कि राज्य संबंधी विषयों अथवा मंत्रों पर समिति में विचार हुआ करता था। राजा भी समिति में उपस्थित हुआ करता था और उसके लिये ऐसा करना आवश्यक समझा जाता था। ऋग्वेद में राजा और समिति एक स्थान पर एक मत्र आया है जिसका समिति में अर्थ है-"जिस प्रकार एक सच्चा राजा ससे यही तारण जाता है ( राजा न सत्यः समितीरियानः) । राजा का कर्तव्य होई निकलता है कि समिनि में उपस्थित होना होता था, तो समझा जा था; और यदि वह उसमें उपस्थित नहीं इस बात का महत्व आगेाता था कि वह सच्चा राजा नहीं है। जब हम वैदिक काल की चलकर उस समय दिखलाया जायगा, विचार करेंगे। संभवतः राज्याभिषेक संबंधी रीतियों पर तव तक समिति के सम्मुख ब तक समिति का अस्तित्व था, करने की प्रथा भी प्रचलित था राजा के अपने आपको उपस्थित वैदिक काल के ग्रंथों मे प्रायः ।। छांदोग्य उपनिषद् में, जो एक स्थान पर इस बात का उल्लेख है विवहुतों के बाद का है, श्वेतकेतु प्रारुण्य गौतम एक

सव का समान मंत्र हो,

समान विचार हों। ब्लूमफील समान समिति हो, समान व्रत हो और डS. B.E. ४२१३६ । + ऋग्वेदा, १२,६ समिताविव । ऋग्वेद १०, मिलायो-यत्रौषधीः समग्मत राजानः .