पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/४६

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( १५ ) बार पंचालों की समिति देखने गए थे और उस समय वहाँ उनका राजा (प्रवाहण जैवाल ) भी समिति में उप- स्थित था। ६८ समितियों में जो वाद-विवाद होते थे, उनमें वक्ता इस वात के आकांक्षी होते थे कि समिति में जो लोग उपस्थित हों, उन्हें हमारे भाषण सुंदर और प्रिय जान वाद-विवाद पड़ें (ये संग्रामाः समितयस्तेषु चारु वदेम ते)। प्रत्येक वक्ता यह चाहता था कि मैं समिति मे अपने आपको श्रेष्ठ सिद्ध कर दिखलाऊँ और कोई मेरा प्रतिवाद न कर सके। अथर्व वेद २, २७ में नीचे लिखी जो प्रार्थना है, उसका संबंध भी इसी प्रकार के वाद-विवाद से है- "मेरा विपक्षी विवाद में मुझे न जीत सके......जो लोग मेरे विरुद्ध होकर विवाद करे, त उनके विवाद को दबा दे, उन्हें शक्तिहीन कर दे छान्दोग्य उप० ५,३ । मिलाओ वृहदारण्यक उप० ६, २ और देखो नीचे का । अथर्व वेद ७, १२, १ और १२, १, ५६ । 1 जव वह समिति में पहुँचे, तब उसे कहना चाहिए-"मै श्रेष्ठ (अपने विपक्षियों से ) होकर यहां पाया हूँ। मै यहाँ श्रेष्ठ होकर पाया हूँ, जिसमे यहां कोई मेरा प्रतिवाद न कर सके।" अभिभूरहमागमम् विराड प्रतिवाश्या.। पारस्कर गृह्य सूत्र ३, १३, ४ में उद्वत एक वैदिक मंत्र । देखो S. B. E२६. पृ० ३६३ ।