पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/४७

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(१६) "हे इंद्र, जो हम लोगों का शत्रु हो, तू उसके कथन को दबा दे। हम लोगों को अपने बल से उत्साहित कर । विवाद में मुझे श्रेष्ठ बना* " 8 ऊपर श्वेतकेतु का जो उल्लेख किया गया है, उससे यह भी सिद्ध होता है कि समिति में समय समय पर राज- नीति के अतिरिक्त और और विषयों पर समिति के राजनीति भी वाद-विवाद हुआ करते थे। श्वेतकेतु से इतरेतर कार्य एक बहुत बड़े विद्वान युवक थे, जिन्होंने छांदोग्य उपनिषद् के अनुसार चौबीस ही वर्ष की अवस्था मे सब प्रकार के धार्मिक तथा दार्शनिक साहित्य का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया था। छांदोग्य तथा बृहदारण्यक उपनिषदों में इस बात का उल्लेख है कि यह युवक अपनी शिक्षा समाप्त करने के उपरांत तुरंत ही समिति में गया था, जो पंचालों की परिषद् भी कहलाती थी। ( पञ्चालानां समितिमेयाय, पचालानां परिषदमाजगाम ।) पंचाल जाति की समिति में क्षत्रिय (राजन्य ) राजा प्रवाहण जैवलि (अथवा जैवल ) ने उससे दर्शनशास्त्र-संबंधी पाँच प्रश्न किए थे। पर वह अभिमानी तथा विवादेच्छु युवक (कुमार ) उनमें से एक प्रश्न का भी उत्तर न दे सका और जैवालि के यह कहने पर उसे वहाँ से S. B.E. ४२. १३७-८। छांदोग्य उप० ६ (प्रपाठक)। मिलानो श्रापस्तंब धर्मसूत्र १, २,५-६।