पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/४८

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( १७ ) चले जाना पड़ा-“भला जो प्रादमी ये सब बातें नहीं जानता, वह कैसे कह सकता है कि मैंने शिक्षा प्राप्त की है। यहाँ इस बात का पता चलता है कि समिति एक प्रकार से राष्ट्रीय विद्यापीठ का भी काम करती थी। ६ १०. यह बात विशेष ध्यान रखने की है कि ऋग्वेद के केवल उन्ही अंशों में समिति का उल्लेख पाया जाता है जो सव से वाद के समझे जाते हैं। इससे समिति विकसित हम यह अभिप्राय निकाल सकते हैं कि समाज की संस्था थी यह समिति आरंभिक वैदिक युग की नहीं थी, बल्कि परवर्ती विकसित तथा उन्नत समाज की थी। वाद विवाद की उन्नत अवस्था, वाद विवाद करने का पूर्ण अधिकार, दूसरो की सम्मति पर विजय प्राप्त करने की वक्ता की चिंता आदि बातें उच्च कोटि की उन्नति और सभ्यता की सूचक हैं। जरमनी में इस प्रकार की जो सार्वजनिक समितियाँ हुआ करती थी, उनमें केवल रईस' या सरदार ही वोला करते थे; और वहाँ उपस्थित रहनेवाले सर्व साधारण किसी विषय मे अपनी मूक सम्मति केवल शस्त्रों की झंकार से ही सूचित किया करते थे। वाद विवाद की कला से वे तब तक अपरिचित ही थे। अतः पश्चिमी युरोप की प्रारंभिक काल की सार्वजनिक समितियों के साथ इन समितियों की छांदो० उप०५, ३, वृहदार० उप० ६,२। i Tacitus, Horibus et Populis Germani O. II. हि-२ [[चित्र:|thumb|right|200px|]]