पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/४९

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( १८ ) तुलना करना, जैसा कि कुछ युरोपियन विद्वानों ने किया है, ठीक नहीं है। समिति की अधिक उन्नत अवस्था की सूचक दूसरी बात यह है कि सभा की भॉति, जिसका उल्लेख हम अभी आगे चलकर करेंगे, इस समिति का भी एक समिति का सभापति पति या ईशान होता था। उदाहरण के लिये पारस्कर गृह्यसूत्र ३. १३. ४. में उद्धृत मंत्र दिया जा सकता है, जिसमें कहा गया है कि इस समिति का ईशान अपने बल में अद्वितीय है । जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, यह बात स्पष्ट है कि यह समझा जाता था कि समिति में सभी लोग उपस्थित हैं। परंतु, उदाहरणार्थ, जब श्वेतकेतु समिति का संघटन पंचालों की समिति में, जहाँ बड़े बड़े दार्शनिक और राजनीतिज्ञ बैठे हैं, जाता है, तब यह बात बहुत ही कम संभव है कि जाति के सभी लोग प्रतिनिधित्व के किसी सिद्धांत के बिना ही समिति में स्वयं उपस्थित हो। हमें पता चलता है कि वैदिक युग में लोग प्रतिनिधित्व के सिद्धांत का आदर करते थे और अनेक प्रकार से उसका उपयोग भी करते थे। वहाँ राज्याभिषेक के अवसर पर ग्रामणी अथवा गॉव का मुखिया प्रतिनिधि रूप में उपस्थित होता

. S. B. E. २६. ३६२ । मूल-अस्याः पर्षद ईशानः सहसा

सुदुष्टरो जन इति ।