पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/५०

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(१६) है। अभिषेक में व्यापारियों और वणिकों आदि के भी प्रतिनिधि मिलते हैं। अथर्व वेद के एक मंत्र से, जिसमें भूमि की स्तुति की गई है और जिसमें सारे देश की समितियों का उल्लेख है ( १२.१.५६. ये संग्रामा समितयः ), यह पता चलता है कि जो जो एकत्र होते थे, वे (संग्रामाः) समस्त ग्राम (संग्राम) होते थे। यह वात बहुत ही प्रसिद्ध है कि गाँव के सब लोग मिलाकर एक समझे जाते थे। शर्यात मानव अपने ग्राम समेत घूमा करता था (शतपथ ब्रा० ४. १. ५. २.७१)। परवर्ती कालो मे धर्म-शास्त्रों से पता चलता है कि यह 'गॉब' मुकदमे लड़ा करता था; यहाँ तक कि 'गॉव' पर जुरमाना भी होता था। ग्रामणी ही ग्राम-संघटन का सर्वख हुआ करता था, यहा तक कि गाँवों के नाम भी स्वयं उनके नेता या प्रामणी के नाम पर होते थे+। तैत्तिरीय संहिता में एक इस बात का भी उल्लेख है कि परस्पर निर्णय करने के लिये उत्सुक ग्राम के सब लोग मिलकर एकत्र होते हैं (संग्रामे संयत्ते समय- .. देखो ६२११ । ये ग्राना यदरण्य या सभा अधिभूम्याम् । ये संग्रामाः समितपस्तेषु चार वढेम ते ॥

  • मिलायो-"अनेक वाक्यों में ग्रान शब्द इस प्रकार पाया है

जिपनं उसका व्युत्पत्तिक अर्थ मनुष्यों का समूह" जान पड़ता है।" मैनल पार कीथ कृत Vedic Index: २४१. + देलो काशिका ५ ३. ३१२ 'देवदत्तो ग्रामणीरेपां न इने देवदत्तकाः ।