(२०) कामः)। जान पड़ता है कि यदि बिलकुल प्रारंभ में ही नहीं, तो भी कम से कम परवर्ती काल में समिति के संघटन के मुख्य आधार ग्राम ही होते थे। ११.समिति का जीवन-काल या आयु बहुत दीर्घ हुआ करती थी। स्वयं वैदिक काल में ही वह अनादि समझी जाती थी और प्रजापति की कन्या कही समिति का ऐतिहा- जाती थी। इससे जान पड़ता है कि सिक वर्णन उस समय भीवह एक प्राचीन संस्था रही होगी। उसके निरंतर अस्तित्व का प्रमाण पहले तो ऋग्वेद और अथर्व वेद से तथा तदनंवर छांदोग्य उपनिषद् ( ई० पू०८०० अथवा ७०० ) से लगता है और इसका समय वैदिक काल का प्रायः अंतिम अंश है। ये सब उल्लेख मिलाकर कई शता- ब्दियों तक पहुँचते हैं। यह संस्था अंतिम वैदिक काल तक नहीं रह गई थी; और उस युग में इसका अस्तित्व नहीं था, जिसके अंत में साम्राज्यों का उदय या प्रारंभ हुआ था। इस बात का प्रमाण पारस्कर गृह्य सूत्र (ई० पू० ५००) से चलता है, जिसमे समिति (जिसका दूसरा नाम उस समय परिषत् अथवा
- २. १. ८. ४. मिलाओ-आर्थीयै सुहृद्भिरैकमत्यं समयः ।
शत्रुभिः संधिरित्यन्ये । तैत्तिरीय संहिता पर भट्ट भास्कर मिन । युद्ध कार्य के लिये सब ग्रामों के एकत्र होने के कारण ही संग्राम शब्द का दूसरा अर्थ 'युद्ध' हुआ था। अथर्व वेद ७.१२॥