पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( २१ ) पर्पत् पड़ गया था* ) का उल्लेख स्मृति रूप में किया गया है (पा. गृ० सूत्र ३. १३,४)। पारस्कर में, जैसा कि उसके आरंभिक वाक्य (अथातः सभाप्रवेशनम् ) से सुचित होता है, प्राचीन समिति शब्द का व्यवहार सभा के लिये किया गया है। जातकों के समय (ई० पू० ६००) से पहले ही समिति का अंत हो जाता है। इस प्रकार हमे समिति का बहुत पुराना इतिहास ऋग्वेद के अंतिम काल से लेकर प्रायः ( ई० पू० ७००) तक का मिलता है; और जान पड़ता है कि उसका अस्तित्व प्रायः एक हजार वर्ष तक अथवा उससे भी अधिक समय तक था। साम्राज्य युग मे हमें समिति का कहीं पता नहीं चलता; परंतु उसके बदले में हमें दूसरी संस्था मिलती है। जैसा कि हम आगे चलकर (प्रकरण २७ में) दिखलावेंगे, यह संस्था समिति के भस्मावशेप से उत्पन्न हुई थी। परिपत् का शब्दार्थ है-महाधिवेशन । समिति के अधिवेशन से स्वयं समिति का ही बोध होने लगा था। कहीं कहीं पर्पत् रूप भी पाया जाता है। (मिलायो वौधायन धर्मसूत्र १. १.१.)