पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/५३

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तीसरा प्रकरण समा १२. वैदिक युग में तथा उसके उपरांत इसी प्रकार की एक और संस्था थी जो "सभा कहलाती थी। यह समिति सभा-प्रधान सार्व- की वहन और प्रजापति की दो कन्याओं जनिक संस्था में से एक कही गई है* | यह भी एक सार्वजनिक संस्था थी। सभा मे सब के एक मत होने के संबंध में जो प्रार्थना की गई है, उससे जान पड़ता है कि सभा

  • अथर्य बंद ७.

सभा च मा समितिश्चावतां प्रजापतेदुहितरी संविदाने । येना संगछा उप मा स शिक्षाचार वदानि पितरः संगतेषु ।।१।। विद्म ते सभे नाम नरिष्टा नाम वा असि । ये ते के च सभासदस्ते मे संतु सवाचसः ।। २ ।। एपासह समामीनानां वर्ग विज्ञानमादहे। अस्याः सर्वस्याः संसदो सामिद भगिनं कृष्ण ॥३॥ यो मनः परागतं यद्बद्धमिह वेह वा । तह श्रावत यामसि मयि बो रमतां मनः ॥ ४॥ अनुवाद- (१) प्रजापति की नेनों कन्याएँ समिति और सभा साथ साथ और मिलकर मेरी सहायता करें । जिनके साथ में मिलू, वे मेरे साथ सहयोग करें। हे पितरो, जो लोग एकत्र हो, उनके साथ मैं सुचारु रूप से बोलू।