पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(Criminals) के नाम पर Criminal Courts कहलाते हैं । शुक्ल यजुर्वेद के पुरुषमेध में समाचर अथवा सभा की ओर जानेवाले को न्याय का श्राखेट (धर्माय सभाचरम ३०.६.) कहा गया है। इसके अतिरिक्त ऋग्वेद (१०. ७१. १०) में सभा से लौटकर सफलतापूर्वक आनेवाले के मित्रों को प्रसन्न और आनं- दित कहा गया है और स्वयं लौटकर आनेवाले को कर्लक या अपराध से रहित बतलाया गया है। सर्वे नन्दन्ति यशसागतेन सभालाहेन सख्या सखायः। किलिवपस्पृत्तुिपणिों पामर हिते भवति वाजिनाच ।। शुक्ल यजुर्वेद में इस बात का भी उल्लेख है कि सभा में लिए हुए अपराधों के लिये लोग पश्चात्ताप करते हैं । जातकों मे बहुत प्राचीन काल से चला आया हुआ एक पद्य या गाथा है जिसमें कहा गया है कि जिस सभा मे अच्छे लोग (संतो) न हो, वह सभा ही नहीं है; जो लोग धर्म (न्याय ) की बात नहीं कहते, वे अच्छे आदमी ही नहीं हैं, और जो लोग राग-द्वेष आदि को छोड़कर न्याय की बातें करते हैं, वे ही अच्छे आदमी हैं। रखी जाती थी। नादि का अर्थ यदि नदनशील या शभकारी किया जाय, तो इसका संकेत उस रूप की ओर हो सकता है जो उसे वाद विवाद के कारण प्राप्त होता था।

  • यद्ग्रामे यदरण्ये यत्सभायां यदिन्द्रिये ।

अच्छूटे यदा यदेनश्चमा वयं यदेकस्याधि धर्मणि तस्यावयज- नमसि ॥ २०, १७. 3