पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/५९

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3 (२८) और न्याय-संबंधी कार्यों में उसकी कुछ पुरानी मुख्य मुख्य बातें ज्यों की त्यों बनी थी। ६१६. केवल समिति और सभा ही वैदिक युग की सार्व- जनिक संस्थाएं नहीं थीं। उन दिनों धार्मिक जीवन की व्य- वस्था विदथ सभा के द्वारा होती थी,जो विदथ और सेना समिति से भी पहले से चली आती थी । जान पड़ता है कि सर्वसाधारण की यही सबसे पहली और मूल संस्था थी जिससे सभा, समिति और सेना की सृष्टि हुई थी; क्योंकि हमे विदथ का संबंध नागरिक, सैनिक और धार्मिक तीनों प्रकार के कार्यों के साथ दिखाई देता है (राथ)। सेना, जिसमें प्राचीन काल में सभी लोग सैनिक होते थे, स्वय' एक संस्था समझी जाती थी और संघटनात्मक समूह के रूप में होती थी। तसभा च समितिश्च सेना च (अथर्व वेद १५६२)+

  • अथर्व वेद १. १३. ४ (व्हिटने ने इसका अनुवाद 'काउन्सिल'

किया है।) ऋग्वेद १. ६० (जहाँ अग्नि को विदथ का केतु या झंडा कहा गया है। ) जिम्मर (पृ० १७७ ) का अनुमान है, जो कदाचित् ठीक नहीं है, कि यह समिति से छोटी संस्था थी। ( मैक्डनल और कीथ) + विदथस्य धीभिः नत्रं राजाना प्रदिवो दधाथे । ऋग्वेद ३. ३८.१. ऋग्वेद १७ १. ४. और ३. २६. ६. इसके अतिरिक्त देखो विदथ के संबंध में मैक्डनल और कीय ५. १. + इससे तथा पृथिवी सूक्त (अथर्व वेद १२.१५६.) से यही प्रमा- णित होता है कि सभा भी सेना की भांति एक स्वतंत्र संस्था थी। कुछ ,