पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(२६) अभी तक सेना के संबंध में विशेष बातों का पता नहीं लगा है; और फिर इस पुस्तक में हमारा विशेष विचारणीय विषय हिंदू राजनीति का केवल नागरिक अंश ही है। ६१७. इसके परवर्ती काल में चरयों के द्वारा शिक्षा की अलग व्यवस्था होती थी। यही चरण मानों वैदिक युग की शिक्षा संबंधी प्रधान केंद्र संस्था ( Faculty) वैदिक युग के उपरांत होती थी। जान पड़ता है कि शिक्षा की प्रवृत्ति संबंधी परिषद् आगे चलकर साधारण राष्ट्रीय परिषद् या समिति से अलग हो गई थी। इसी प्रकार आर्थिक या व्यापारिक जीवन का केद्र व्यापारिक संघों में स्थापित हो गया था, जिनके अस्तित्व का पता जातकों और धर्म-सूत्रों में मिलता है। इस प्रकार वैदिक युग के परवर्ती काल में देश का राष्ट्रीय जीवन भिन्न भिन्न स्वाधीन संस्थाओं के रूप में व्यक्त होता था; और निरंतर इसी की उन्नति तथा विकास के द्वारा वैदिक युग की क्रमागत संस्थाओं ने आगे चलकर वर्गीय संस्थानो का रूप धारण किया था। विद्वानों का यह मत है कि यह वह भवन है जिसमें समिति का अधि- वेशन होता था; पर वास्तव में यह बात नहीं है।