पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/६२

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( ३१ ) के द्वारा ही शासन करने की प्रथा थी। ऋग्वेद तथा अथर्व वेद मे आई हुई स्तुतियों, महाभारत के मत तथा ईसवी चौथी शताब्दी में मेगास्थनीज की सुनी हुई परंपरागत बातों से यही सिद्ध होता है कि भारत में राजकीय शासन के बहुत वाद और प्रारंभिक वैदिक युग के उपरांत प्रजातंत्र शासन की प्रथा चली घी। प्रजातंत्र शासन के प्रमाण परवर्ती वैदिक साहित्य, ऋग्वेद के ब्राह्मण माग, ऐतरेय तथा यजुर्वेद और उसके ब्राह्मण तैत्तिरीय में मिलते हैं। सुभीते और स्पष्टता के विचार से हम पहले परवर्ती इतिहास के कुछ अधिक प्रसिद्ध प्रजातंत्रों का उल्लेख करके तव उन प्रजातंत्री संस्थाओं का उल्लेख करेंगे जिनका वर्णन उक्त वैदिक ग्रंथो आदि में आया है। हिंदू राज्यों की राजा-रहित शासन-प्रणालियों के उल्लेख से इस जाति के संघटनात्मक ग शासन-प्रयाली संबंधी इति- हास के एक बहुत बड़े अंश की पूर्ति होती है। यह मानों उस इतिहास का एक बहुत बड़ा प्रकरण है। विवेचन मे हम इस विषय पर विशेष ध्यान देंगे। $ १६, प्रोफेसरहीस डेविड्स ने अपने Budhist India नामक ग्रंथ मे दिखलाया है कि शासन का प्रजातंत्री स्वरूप महात्मा बुद्ध के देश में तथा उसके हिंदू प्रजातंत्रों के आस-पास पाया जाता था। परंतु प्राचीन पारिभापिक शब्द उसमे यह नहीं बतलाया गया है कि हमारे यहाँ के साहित्य मे हिंदू प्रजातंत्रो के संबंध के पारिभाषिक अतः इस