पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/६५

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( ३४ ) 'हे भिक्खुओ ! मैं यह निर्धारित करता हूँ कि तुम गण की रीति पर उपोसथ के दिन भिक्खुओं की गणना करो (गणमग्गेन गणेतुम); अथवा तुम शलाकाएँ (मताधिकारसूचक) लो।' एक स्थान पर एकत्र होने पर सव भिक्खुओं की गणना की जाती थी; और वह गणना या तो गण की गणना के ढंग पर होती थी और या उस ढंग से होती थी जिस ढंग से आजकल गोटी के द्वारा मत एकत्र किए जाते हैं और इनमें मताधिकारसूचक शलाकाएं ली जाती थीं। इस संबंध में हमें महावग्ग के गणपूरक शब्द पर भी ध्यान देना चाहिए । गण- पूरक उस प्रधान अधिकारी को कहते थे जो किसी समाज के जुड़ने पर उसका कार्य प्रारंभ होने से पहले यह देखा करता था कि नियमानुसार पूरक संख्या पूरी हो गई है या नहीं। गणपूरक का साधारण अर्थ होता है-'गण की पूर्ति करने- वाला'। इससे सिद्ध होता है कि गण लोगो का समूह या समाज होता था; और उसे गय इसलिये कहते थे कि उसमे उपस्थित होनेवाले लोग या तो कुछ विशिष्ट संख्या में होते थे और या उनकी गणना की जाती थी। तात्पर्य यह कि गण- राज्य उस शासन-प्रणाली को कहते थे जो बहुत से लोगों के समूह या पार्लिमेंट के द्वारा होती थी। इस प्रकार गण का - देखो ग्यारहवें प्रकरण में विचार की कार्य-प्रणालीवाला अंश । गणपूरको वा भविस्सामीति । महावग्ग ३. ६.६. मिलानो S. B. E. खण्ड १३, पृ. ८०७ ।