पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/६६

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( ३५ ) दुसरा अर्थ पार्लीमेंट या सिनेट हो गया; और प्रजातंत्र राज्यों का शासन उन्हीं के द्वारा होता था, इसलिये गण का एक अर्थ स्वयं प्रजातंत्र राज्य भी हो गया। ६२१. पाणिनि ने अपने व्याकरण ( ३. ३.८६) में (संघोद्धौ गणप्रशंसयोः। ) कहा है कि संघ शब्द (साधारण संघातक शब्द के विरुद्ध हन धातु से निकला है। ३. ३. ७६.) गण के अर्थ में आता है। पाणिनि ने जहाँ जहाँ व्यक्तिगत संघों का उल्लेख किया है, वहॉ वहाँ उन्होंने उन्हीं वर्गों या उपवर्गों के नाम लिए हैं जो विजयस्तंभों तथा दूसरे प्रमाणों के आधार पर प्रजातंत्रो प्रमाणित हो चुके हैं।। पाणिनि के समय में संच शब्द से गण का अभिप्राय लिया जाता था; पड़ता है कि उस समय धार्मिक संघों का उतना अधिक महत्व नहीं स्थापित हुआ था और न उनकी उतनी अधिकता ही थी। वास्तव में, जैसा कि हम आगे चलकर बतलावेंगे, धार्मिक संघ तो राजनीतिक संघ का अनुकरण मात्र था। प्रसिद्ध प्रजातंत्री संस्थाओं को कौटिल्य ने संघ कहा है। इसलिये इस विषय में संदेह का कोई विशेष स्थान नहीं रह जाता कि प्रारंभ में संघ शब्द से प्रजातंत्र का ही अभिप्राय लिया जाता था। बौद्धों का सब से पुराना ग्रंथ स्वयं पाली पिटक भी इस बात और जान गणप्रशंसयोः किम् । संवातः। काशिका पृ० २१४ (बनारस१८६८) देखो पृष्ठ ३६ का दूसरा नोट (1) +देखो साता प्रकरण ।