पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/६७

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7 1 ( ३६ ) का समर्थन करता है। मलिझम निकाय ( १. ४. ५. ३५.) में संघ और गण शब्द साथ ही साथ आए हैं और बिना किसी प्रकार की गड़बड़ी या संदेह के उनसे बुद्ध के समय के प्रजा- तंत्रों का अभिप्राय निकलता है; 'इमेसम पि हि भो गोतम संघा- नम्, गयानम् सेयथिदम् वन्जिनम् मल्लानम्' अर्थात्-'हे गौतम, यह वात संघों और गणों के संबंध मे है; जैसे वजि और मल" इस प्रकार संघ और गण शब्दों से, जिनका व्यवहार पाणिनि के समान ही यहाँ भी हुआ है, पर्याय रूप में ही प्रजातंत्र का अर्थ निकलता है। उस समय के गण और संघ प्रजातंत्र ही थे उस समय के धार्मिक संप्रदाय धीरे धीरे इन शब्दों को ग्रहण कर रहे थे और उसका दूसरा धार्मिक या धर्मसंस्था संबंधी अर्थ उस समय अपना रूप ही धारण कर रहा था । गण शब्द से शासन-प्रणाली का वोध होता था, परंतु संघ शब्द से स्वयं राज्य का अर्थ लिया जाता था। जैसा कि पतं. जलि ने कहा है, वह संघ इसलिये कहलाता है कि वह एक संस्था या एक समूह है ( संहनना )। जैसा कि हम अभी आगे चलकर बतलावेंगे, एक राजनीतिक समूह या संस्था के रूप में संघ के उसी प्रकार राजचिह्न या 'लक्षण प्रादि होते देखो म०नि० १ ४ ५. में संधी और गणी शब्दो का प्रयोग और नीचे 8 २३ का नोट । सिंहनने वृत्तः, पाणिनि पर पतंजलि का भाप्य ५. १. ५६, कील- हार्न खण्ड २. पृ० ३५६. (दूसरा संस्करण)। देखो ४१॥ .