पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/६९

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( ३८ ) निक कोषों ने 'Tribe' वाला अर्थ न कभी ग्राह्य किया और न उसे कभी प्रामाणिक ही समझा। और फिर इसके उपरांत मुझे जो और नई सामग्री मिली है, उसके कारण तो इस संबंध में किसी प्रकार के मतभेद के लिये स्थान ही नहीं रह गया। ६ २३. जैसा कि हम अभी बतला चुके हैं, पाणिनि ने गण और संघ दोनों शब्दो को समानार्थक ही माना है। यह कोई नहीं कह सकता कि यहाँ संघ शब्द का गण के संबंध में पाणिनि अँगरेजी के 'Tribe' शब्द के साथ किसी प्रकार का संबंध हो सकता है। फिर आगे चलकर आया है कि नए गणों की सृष्टि हुई। तो क्या इसका यह अर्थ होगा कि नई 'Tribe' की सृष्टि हुई? इस प्रकार के किए हुए अर्थ पर तो जल्दी कोई विचार ही नहीं हो सकता। ६२४. जातकों के पहले और दूसरे भागों में दो वाक्य ऐसे आए हैं जिनसे हमें गण शब्द का महत्व समझने में बहुत अधिक सहायता मिलती है। उन वाक्यों गण के संबंध में जातक मे इस बात का वर्णन है कि श्रावस्ती के गृहस्थों ने बौद्ध भिक्षुओं का किस प्रकार आतिथ्य-सत्कार

- जर्नल रायल एशियाटिक सोसायटी १६१४, पृ० ४१३ और

१०१०, १६१५ पृ०५३३, १६१६ पृ. १६२ । +देखो पंद्रहवां प्रकरण । देखो लामन्नफल सुत्त ६२-७, जहा॑ नई शाखाबो के प्राचार्य 'संघी चेव गणी च' अर्थात् 'संघ के संस्थापक और गण के संस्थापक' कहे गए हैं। इससे भी "Tribe' वाले अर्थ के सिद्धांत का खंडन होता है ।