पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/७०

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किया। तीन तीन चार चार गृहस्थ एक साथ मिल गए; और कहीं कहीं तो महल्ल भर के लोग एक साथ मिल गए और सब ने मिलकर भिक्षुओं के आतिथ्य-सत्कार का प्रबंध किया। कुछ अवस्थाओं में बहुत से लोगों ने एक साथ मिलकर भिक्षुओं के आतिथ्य का प्रबंध किया और उनका यह मिलना गण-बंधन के अनुसार था । यहाँ गण शब्द का वास्तविक अभिप्राय खुल जाता है और वह अभिप्राय है-लोगों का एक संस्था या साधारण सभा समिति के रूप में मिलकर एक हो जाना । स्वयं बंधन शब्द से ही यह सिद्ध होता है कि गण का संघटन कृत्रिम था; और यह भाव Tribe या उपजातिवाले भाव के, जिसमे संघटन विलकुल स्वाभाविक होता है, विपरीत है ६२५. इस विषय का सब से अच्छा विवेचन महाभारत के शांतिपर्व के १०७ वें अध्याय मे है जिसमें स्पष्टतम शब्दों मे यह बतलाया गया है कि गण वास्तव में क्या था। आगे चलकर चौदहवें प्रकरण में मैंने वह सारा अध्याय ही अनुवाद सहित दे दिया है। उस अध्याय के अनुसार गण अपनी सफलतापूर्ण परराष्ट्र नीति के लिये, अपने धनपूर्ण राजकोप के लिये,अपनी सदा प्रस्तुत रहनेवाली सेना के लिये, गण के संबंध में महाभारत जातक १, ४२२. कदाचि तीनि चत्तारि एकतो हुत्वा, कदाचि गणवंधनेन, कदाचि वीधि-सभागेन, कदाचि सकल नगरम् छंदकं संहरित्वा । जानक २, ४५. गणवंधनेन वहु एकतो हुत्वा ।