(४०) अपनी युद्ध-निपुणता के लिये, अपने सुंदर राजनियमों के लिये और अपनी सुव्यवस्था के लिये प्रसिद्ध थे। उसमें राज्य की नीति अथवा मंत्र तथा गण के बहुसंख्यक लोगों द्वारा उस नीति के संबंध में विवेचन होने का भी उल्लेख किया गया है 1 अन्यान्य अनेक विशेषताओं में से ये विशेषताएँ किसी उपजाति अथवा व्यापारियों की संस्था के संबंध में नहीं हो सकती। इनका संबंध तो प्रजातंत्र अथवा बहुत से लोगों द्वारा शासित होनेवाले राज्य के संबंध में ही हो सकता है। उसका साधारण अर्थ है-समूह और पारिभाषिक अर्थ है-प्रजा- तंत्र अथवा समूह द्वारा शासन । धर्मशास्त्रों के टीकाकारों के समय से बहुत पहले ही राजनीतिक संस्था के रूप में गण का अंत हो चुका था। परंतु उन टीकाकारों ने कभी गण को गण के संबंध में धर्मशास्त्र और अमरकोश उपजाति अथवा Tribe समझने की भूल नहीं की। वे उन्हें कृत्रिम जन- समूह या संस्था ही समझते थे। अर्थात् वे उनका वही अर्थ लेते थे जो डा. जोली ने अपने नारद के अनुवाद (S B. E खण्ड ३३, पृ० ६ का नोट ) में लिया है। अर्थात् गण एक साथ रहनेवालों का समूह या सभा - दिव्यावदान में भी इस शब्द का इसी अर्थ में व्यवहार हुआ है जिसमें मंत्रियों के समूह को मंत्रियों का गण कहा गया है। पृ० ४.४ और ४२६ ।