पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/७५

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( ४४ ) और गण को समानार्थी ही बतलाया है, तब हमें गण के वास्त- विक महत्व के संबंध में किसी प्रकार के संदेह का स्थान नहीं रह जाता। अब हम इन पारिभाषिक शब्दों को छोड़कर स्वयं प्रजा- तंत्रों के संबंध में विचार करते हैं।