पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/७६

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पाँचवाँ प्रकरण पाणिनि में प्रजातंत्र $ २६. पाणिनि ने अपने समय के हिंदू प्रजातंत्रों के संबंध मे सब से अधिक महत्वपूर्ण बाते वतलाई हैं; और मेरी समझ में उसका समय ई० पू० ५००के संघ के संबंध में पाणिनि लगभग है। उसने संघ शब्द के भिन्न भिन्न अनेक रूप बनाने के अनेक नियम दिए हैं। उन नियमों की संख्या की अधिकता से पता चलता है कि पाणिनि काल के लोग तत्कालीन प्रजातंत्रों को कितना पाणिनि का यह काल उसके किए हुए राजनीतिक उल्लेखो के श्राधार पर निश्चित किया गया है और इस विषय का विवेचन एक स्वतंत्र निबंध में हो सकता है। तो भी यहीं इस बात की ओर ध्यान आकृष्ट किया जा सकता है कि पाणिनि मखली खानाबदोशो से परिचित था ( मस्करिन् ६, १, १५४, NI. V. पृ० २५६, मस्करिन्। देखो इस शब्द के संबंध में पतंजति का कथन ।) मखली गोशाल के जो बुद्ध का समकालीन था, मखली लोग श्राजीवको मे सम्मिलित हो गए थे और उसी समय से वे श्राजीवक कहलाने लगे थे। अंग स्वतंत्र राज्य नहीं रह गया था और कोशल तब तक स्वतन था (४, १, १७०-१७५) इसके अतिरिक्त, जैसा कि पहले कहा जा चुका है, पाणिनि के अनुसार उसके समय में संव शब्द का व्यवहार केवल प्रजातन के अर्थ में होता था। उसमे यवनो की लिपि का भी उल्लेख है; और अब समय,