पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/७७

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( ४६ ) अधिक महत्व देते थे। अन्यान्य महत्वपूर्ण प्राचीन संस्थाओं की भॉति प्रजातंत्रों ने भी प्राचीन वैयाकरणों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया था। इसके अतिरिक्त पाणिनि इस बात का भी पता देता है कि उसके समय में देश के किन किन भागों में प्रजातंत्रों का कहाँ कहाँ तक विस्तार था। जैसा कि हम ऊपर बतला चुके हैं, पाणिनि के अनुसार संघ एक पारिभाषिक शब्द है, जिससे राजनीतिक संघ का अभिप्राय सूचित होता है; अथवा जैसा कि स्वयं उसने कहा है, वह गण या प्रजातंत्र है। वह धार्मिक संघ से परिचित नहीं था; और यह धार्मिक संघ, जैसा कि हम आगे चलकर बतलावेंगे (६४३), उसी राजनीतिक संघ के अनुकरण पर बना था। पाणिनि के समय में या तो बौद्ध और जैन संघों का अस्तित्व ही नहीं था (और उस दशा में पायिनि का समय ई० पू० लगभग ६०० होगा) अथवा उस समय तक उन्होंने कोई महत्व ही नहीं प्राप्त किया था । ध्यान रखने की है कि कात्यायन (ई० पू० ४०० )* के समय इसका भी समाधान हो सकता है, क्योंकि जैसा आगे चलकर बतलाया गया है, मेरे अनुमान से उन यवनों का संबंध नीसा के हेलेनिक नगर राज्य से हो सकता है जो काबुल नदी के किनारे स्थित था और जो सिकंदर के समय से बहुत पहले वर्तमान था। इसके अतिरिक्त देखो भारत में बने हुए पारसी सिक्कों पर अंकित यूनानी अक्षर । रैप्सन कृत Indian Coins. प्लेट नं०१। J BO.R.S. खण्ड १, पृ० ८२ और ११६ । यह बात