पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/७८

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( ४७ ) मे भी संघ का वही पारिभाषिक अर्थ लिया जाता था जो पाणिनि के समय में प्रचलित था; क्योंकि उसने पाणिनि ३, ३, ८६ के संबंध से असम्मतिसूचक कोई वार्तिक नहीं दिया है। कौटिल्य ( ई० पू० ३००) ने भी इस शब्द का इसी अर्थ में व्यवहार किया है; पर उसमे इतना अंतर अवश्य है कि वह उसका व्यवहार बिलकुल साधारण अर्थ मे भी करता है (पृ० ३६, १६, ४०७); और वह अर्थ है-बहुत से लोगों की मिलकर बनाई हुई समिति, सभा या संस्था आदि । ६३०. पाणिनि ने ५, ३, ११४ से ११७ तक वाहीक देश के संघों के संबंध में तद्धित के नियम दिए हैं। यदि किसी विशिष्ट संघ के अंतर्भुक्त व्यक्तियों का संघ से जाति कहीं उल्लेख हो, तो इन नियमों के अनुसार यह जाना जा सकता है कि वे लोग ब्राह्मण थे, क्षत्रिय थे अथवा किसी और जाति के थे। उदाहरण के लिये मालव लोगो का प्रसिद्ध उदाहरण लीजिए, जिन्हें सिकंदर के इतिहासलेखकों ने मल्लोई कहा है। मालव संघ का जो सदस्य क्षत्रिय या ब्राह्मण न होगा, वह मालव्याः कहलावेगा; यूनानी लेखकों ने जिन Oxydrakal तथा Mallon का उल्लेख किया है, उन्हें व्याकरण के क्षुद्रक और मालव निश्चित करने का अये सर रामकृष्ण गोपाल भांडारकर को प्राप्त है, जिन्होंने सब से पहले पुराने विद्वानों के निर्धारण की भूल सुधारी थी। उन विद्वानों ने Oxy. drakai को पहले शूद्र समझा था। देखो इंडियन एंटीक्वेरी भाग १, पृ०२३ ।