पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/७९

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( ४८ ) और जो क्षत्रिय होगा, वह मालवः कहलावेगा। परंतु दोनों का बहुवचन मालवाः ही होगा। इससे सिद्ध होता है कि उस समय तक हिंदू समाज अपनी पूर्ण और विकसित अवस्था तक पहुँच चुका था; और वह उस प्रारंभिक अवस्था में नहीं था जिसमें जंगली उपजातियों के लोग (Tribe) रहा करते हैं। ३१. कात्यायन ने पाणिनि के ४, १, १६८ के अपने वार्तिक में कहा है कि (अन् प्रत्ययवाले) इस नियम का व्यवहार उसी क्षत्रिय के राष्ट्रीय नाम का व्युत्प- संघ के संबंध में कात्यायन त्तिक रूप बनाने में होगा, जो क्षत्रिय किसी संघ का सदस्य न होगा; क्योंकि यह नियम केवल एक- राज के निवासी अथवा अधीनस्थ क्षत्रियों के ही संबंध में है।

- प्रायुधजीविसंधाञ् ज्यड्वाहीकेवब्राह्मणराजन्यात् ॥२॥३॥११॥

काशिका ..वाहीकेषु य आयुधजीविसंघस्तद्वाचिनः प्रातिपदिका- बाह्मणराजन्यवर्जितात्स्वाथै ब्यट् प्रत्ययो भवति । ब्राह्मणे तद्विशेष- ग्रहणम् । राजन्ये तु रूपग्रहणमेव ..क्षौद्रक्ष्यः सौद्रक्यो तुद्रकाः । मालन्यः । मालन्यौ। मालवाः...पृ ४५५-४५६ । | जनपदशब्दातक्षत्रियादम् ॥ ४॥ १ क्षनियादेकराजासंघप्रतिपेधार्थम् । हिंदू राजनीति मे एकतनो शासन को एकराज कहते है। वैदिक साहित्य में जहाँ राज्याभिषेक संबंधी रस्में दी गई है, वहीं इस शब्द की व्याख्या की गई है। अब यह मान लिया गया है कि उसका अर्थ एकाधिकारी राजा अथवा Monarch है । (देखा मैक्डनल और कीथ कृत Vedic Index भाग १ पृ० ११६) इसका शब्दार्थ होता है पूर्ण और एकाधिकारी राजा । (देखो, अर्थशास्त्र ११, ३ पृ० ३७६ ।) ॥ १६८॥ कात्यायन-