पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/८०

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(४६ ) उक्त विवेचन से यह निष्कर्ष निकलता है कि संघ में जो भाव है, वह एकराजवाने भाव का विरोधी है। साथ ही इससे यह भी अभिप्राय निकलता है कि संघ या हिदू प्रजा- तंत्र के सदस्य ब्राह्मण भी होते थे क्षत्रिय भी होते थे तथा और अन्यान्य जातियों के लोग भी होते थे। अर्थात् संघ में किसी एक ही जाति अथवा वर्ग के लोग नहीं होते थे। ३२. पाणिनि ने अपने व्याकरण में नीचे लिखे संघों पाणिनि के श्रायुध- या प्रजातंत्रों के नाम दिए हैं- जीवी संघ १. वृकर, २. दामनि आदि, इस संबंध में पतंजलि ने लिखा है- क्षत्रियादेकराजादिति वक्तव्यम् । कि प्रयोजनम् । संघप्रतिपेधार्थम् । संघान्माभूत् । पञ्चालानामपत्यम् विदेहानामपत्यमिति । तत्तहि वक्तव्यम् । न वक्तव्यम् । न ह्यन्तरेण बहुपु लुकं पञ्चाला इत्येतद्भवति । यस्तस्सा- दुत्पद्यते युवप्रत्ययः स स्यात् । युवप्रत्ययश्चत्तस्य लुक्तस्मि'चालुगुभविष्यति। इद तह चौद्रकानामपत्यम् मालवानामपत्यमिति ॥ अनापि चौक्यः मालव्य इति, नैतत्तेपी दासे वा भवति कर्मकरे वा । किं तर्हि । तेपामेव कस्मिंश्चित् । यावता तेपामेव कस्मिश्विद्यस्तस्मादुत्पद्यते युवप्रत्ययः स स्यात् । युवप्रत्ययश्चेत्तस्य लुक्तस्मि'चालुंगभविष्यति ॥ अथ क्षत्रियग्रहणं किमर्थम् । इह मा भूत् । विदेहो नाम ब्राह्मणस्त- स्थापत्यं वैदेहिः-कीलहान, खंड २, पृ० २६८-६६ । वृकाटेण्यण ॥२॥३॥११॥ इस सूत्र का संबंध पहलेवाले सूत्र से है जो ऊपर सद्धृत किया जा चुका है। । दामन्यादिनिगत पठाच्छ ॥२॥३॥ ११६॥