पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/८३

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1 3 ( ५२ ) वह अर्थ है-'मानना' या 'धर्म आदि का पालन करना' । मनु ने १०, ७४ मे इस शब्द का इसी अर्थ में प्रयोग किया है उसमें कहा गया है कि ब्राह्मण को छः कर्मों का पालन करना चाहिए जिनमें से एक कर्म दान देना भी है। यदि हम उपजीवी शब्द को इस अर्थ में लें, तो इससे यह भाव निकलता है कि जो संघ अस्त्र शस्त्र का व्यवहार करते थे अथवा युद्ध-कला में निपुण हुआ करते थे, वे शखोपजीवी कहलाते थे; और जो संघ राजशब्दोपजीवी कहलाते थे. उनके शासक राजा की उपाधि धारण करते थे। यही बात हम दूसरे शब्दों मे यों कह सकते हैं कि शस्त्रोपजीवी संघो में जो लोग होते थे, वे सब युद्ध-विद्या में बहुत निपुण हुआ करते थे और राजशब्दोप- जीवी संघों के शासक या प्रधान सदस्य राजा की उपाधि धारण करते थे (देखो ५६)। ३३. मकदुनिया या मैसिडोनिया के लेखकों ने ऐसे अनेक प्रजातंत्रों का उल्लेख किया है, जिनमें से वैयाकरणों के ... ब्राह्मणा ब्रह्मयोनिस्था ये स्वकर्मण्यवस्थिता.। ते सम्यगुपजीवेयुः षटकम्माणि यथाक्रमम् ॥ ७४ ।। अध्यापनमध्ययनं यजनं याजनं तथा । दानं प्रतिग्रहत्रैव षटकमाण्यग्रजन्मनः ॥ ७ ॥ मनु, 10. कुल्लूक, उपनीवेयुः = अनुतिष्ठेयुः । देखो यूनानी लेखकों द्वारा उल्लिखित हिंदू प्रजातंत्रों के संबंध मेवी प्रकरण । 3