पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/८४

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( ५३ ) अनुसार दो आयुधजीवी या शश्नोपजीवी संघ है। ये दोनों क्षुद्रक और मालव हैं। इनके राज्यों की सीमा भी बहुत विस्तृत थी और आबादी भी बहुत अधिक थी। इन राज्यों में अनेक नगर थे। वे सव बहुत ही संपन्न और धन-धान्य-पूर्ण थे। यूनानी लेखकों ने जो विवरण दिए हैं, उनसे कहीं यह बात सूचित नहीं होती कि ये लोग धन के लोभ मे दूसरों के लिये लड़ते फिरते थे। ये दोनों ही बड़े बड़े राज्य थे जो अपनी वैभव-संपन्नता तथा नागरिक व्यवस्था के लिये प्रसिद्ध थे। परतु यहाँ प्रश्न यह है कि क्या इन लेखकों ने भी इन राज्यों के लोगों में कुछ ऐसी बाते देखी थी जो आयुधजीवियों के लिये आवश्यक हैं। हम कहते हैं कि हॉ, अवश्य देखी थी; और उन लोगों के लेखों आदि से इस शब्द का वही अर्थ होता है जो हमने ऊपर दिया है। वे लेखक कहते हैं कि इन स्वतंत्र समाजो के लोग युद्ध-विद्या में निपुण होने के लिये बहुत अधिक प्रसिद्ध थे। यूनानी लेखकों ने एक और संघटन का उल्लेख किया है जिसमे एक कानून या राजनियम ऐसा भी था जो नागरिकों को युद्ध-संबंधी कार्यों या अभ्यास आदि के लिये कुछ निश्चित अथवा परिमित समय ही व्यतीत करने के लिये वाध्य करता था। इससे तात्पर्य यह निकलता है कि कुछ लोग ऐसे भी होते थे जो अपनासारा या बहुत अधिक समय कंवल इसी काम मे लगाया करते थे जिसके कारण राज्य देखो श्रागे अाठर्वा प्रकरण ।