पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/८५

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( ५४ ) को नियम बनाकर उन्हें रोकना पड़ता था* | तात्पर्य यह कि उपजीव से यहाँ अभिप्राय राजकीय अभ्यास या कार्य का था। पाणिनि के आयुधजीवी संघ से उन्हीं संघों का अभिप्राय लेना चाहिए जो युद्ध-कला में विशारद होना अपना प्रधान और मुख्य सिद्धांत मानते थे। अपने समकालीन लोगों या राज्यों को दृष्टि में उनके राजकीय संघटन की यही सर्वप्रधान विशेषता ऐसे ही कुछ और प्रकार के प्रजातंत्र थे जिनके यहाँ ऐसे नियम थे जिनके अनुसार राज्य के चुने हुए राष्ट्र- पति अथवा शासन-कार्य करनेवाले मंडल या वर्ग के प्रत्येक सभासद अपने आपको राजा कह सकते थे। थी।

  • देखो मौसिकनो के संबंध में स्टूबो १५, ३४. और ६५१.

श्रिारंभ में मैंने राजशब्दोपजीवी का जो अर्थ किया था, वह अर्थ ठीक नहीं था और इस अवसर पर मैं उसे ठीक कर लेता हूँ। पहले मैं समझता था कि इस प्रकार के प्रजातंत्र के सभी निवासी राजा कहे जाते थे। परंतु अब मुझे पता चला है कि यह बात नहीं थी। बौद्ध ग्रंथो श्रादि में जिन प्रजातनो का उल्लेख है और जिनके संबंध में हम आगे चलकर विवेचन करेंगे, उन प्रजातन्त्रों में केवल चुने हुए सभापति को ही राजा कहते थे। हाँ, उस प्रजातंत्र के नागरिक भी साधारणतः इसलिये राजा कहे जाते थे कि वे अपने प्रजातंत्र के अंग होते थे। उनके राजा कहे जाने का दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि उनमे से प्रत्येक के राजा चुने जाने की संभावना हुआ करती थी।