पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/९१

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(६०) अंकित हैं*। वृष्णियों के सिक्के इनमें से किसी प्रकार के सिक्कों से नहीं मिलते। वे वृष्णियों के राजन्य और गण के नाम से अंकित हैं।। वृष्णि-राजन्न-गणस्य। अब इस बात का पता लगाना आवश्यक है कि शासन-प्रणाली में राजन्य शब्द का महत्व और अर्थ क्या है। यह बात मानने के लिये प्रमाण हैं कि वृष्णियों के संबंध में इस शब्द का कुछ विशिष्ट अर्थ था। अब हमें यह देखना चाहिए कि वह अर्थ क्या है और इस शब्द का क्या महत्व है । 8 ३८. पाणिनि से हमे पता चलता है कि अंधक-वृष्णियों में दो राजन्य थे । पाणिनि ने उनका उल्लेख करने का एक विशेष नियम दिया है, ६, २ (३४)। काशिका + में इस पर वार्तिक करते हुए कहा गया है कि इस नियम का उपयोग अंधकों और • हानले, एशियाटिक सोसायटी बंगाल का कार्य विवरण १८८४ पृ० १३८-४०. संवधरों के संबंध में विशेष जानने के लिये एकराजता के प्रकरण में १३०२ में मंत्रियों के संबंध का विवेचन देखो। ज्ञ के बदले में न पढ़ो। मिलाओ खरोष्ठी राजन्न (जरनल रायल एशियाटिक सोसायटी, १६००, पृ. ४१६.) राजन्यबहुवचन-द्वन्दोऽन्धकवृष्णिपु । ६. २. ३४. + काशिका-"राजन्यवाचिनांबहुवचनांतानां योद्दोऽन्धकवृष्णिषु वर्तते तत्र पूर्वपद प्रकृतिस्वरं भवति। श्वाफल्कचैत्रकाः ( दीक्षित के अनुसार) शिनि वासुदेवाः। अंधकवृष्णय एते न तु राज-याः राजन्यग्रह- एमिहाभिषिक्तवंश्यानां क्षत्रियाणां ग्राणार्थम् । एते च नाभिषिक्तवंश्याः । ..बहुवचनग्रहण किम् । संकर्पण-वासुदेवौ ।..." पृ० ५४६-७. .