पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/९३

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नेताथा, वर्ग तथा वासुदेव के वर्ग का जो उल्लेख किया है, वह अवश्य ही प्राचीन साहित्य के आधार पर है। अक्रूर अंधकों का और जान पड़ता है कि वह किसी समय संयुक्त राज- सभा के दो सभापतियों में से एक सभापति था। महा- भारत में श्रीकृष्ण ने कहा है कि मेरा अधिकार या ऐश्वर्य केवल आधे भाग पर ही है, मैं अर्धभोक्ता हूँ। श्रीकृष्ण के इस कथन का अभिप्राय भी इस बात से खुल जाता है कि संयुक्त राज्यों में दो सभापति हुआ करते थे। महाभारत में एक प्रवाद के आधार पर यह भी कहा गया है कि अक्रूर के वर्ग के श्रीकृष्ण बहुत अधिक विरोधी थे और वे उसकी बहुत निंदा किया करते थे। जान पडता है कि जैनसूत्र में विरुद्ध राज्य का जो उल्लेख है, वह भी अंधक-वृष्णियों के इसी प्रकार के द्वैध शासन के संबंध में है । $ ४०. कहीं वासुदेव और उग्रसेन का, कहीं अक्रूर और वासुदेव का और कहीं शिनि और वासुदेव का उल्लेख मिलता । इससे जान पड़ता है कि दो संयुक्त राज्यों के वर्गों मे प्रायः नीलकंठ का मयूख १ जिसमें वर्ग को एक संस्था कहा है और पाणिनि ५.१.६० जिसमें वर्ग का अर्थ शासन-सभा दिया गया है और जिसके सदस्यों की गणना हुआ करती थी। अमर ने क्षत्रियों के गण या सिनेट को राजन्यक तथा राजाओं के गण को राजक कहा है (२.८.४.)। देखो S२५. साथ ही देखो आगे चलकर अराजक के संबंध में $ १०१. देखो परिशिष्ट क 8 १६७. आचारांग सूत्र २.३, १०. में विरुद्ध राज्य ।