पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/९४

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परिवर्तन भी हुआ करता था। इस बात से यह पता चलता है कि अंधक राजन्य और वृष्णि राजन्य निर्वाचित शासक थे । राजन्य और गण दोनों के नाम से सिक्के अंकित किए जाते थे। कुछ ऐसे सिक्के भी पाए गए हैं जिन पर केवल राजन्य का ही नाम अंकित है और राज्य या गण के नाम का कोई उल्लेख नही है। राजन्य शब्द का जो अर्थ हमने लिया है, उसके आधार पर यदि देखा जाय तो बहुत संभव है कि ये सब सिक्के प्रजातंत्र राज्यों के ही हों। ४१. पाणिनि के नियम ४. ३. १२७ से यह ध्वनि निक- लती है कि संघ के अंक और लक्षण हुआ करते थे। अंक का अर्थ है 'चिह' और लक्षण का भी प्रायः प्रजातंत्रों के अंक यही अर्थ है। मैं तो यही कहता हूँ कि परवर्ती संस्कृत मे जिसे लांछन कहते थे. वह पाणिनि का यही लक्षण है। यह लांछन पताकाओं आदि पर चिह्न स्वरूप हुआ करता था। लक्षण भी संघ राज्यों का चिह्न ही था जिसका व्यवहार वे अपनी मुद्राओं और संभवत: सिक्कों तथा पताकारो आदि पर भी किया करते थे। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में (२, १२, पृ० ८४) और लक्षण देखो कनिंघम कृत Coins of Ancient India पृ. ६६. प्लेट संघाङ्क रक्षणप्वजजिजामण ॥७॥१२७॥ देखो काशिका, पृ. ३५० गार्गः संघ । गार्गोङ्कः । गार्ग लक्षणम् ।