पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/९५

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था। जहाँ चाँदी और ताँबे के सिक्के अंकित करने के नियम आदि दिए गए हैं, वहाँ सिक्के ढालनेवाले प्रधान अधिकारी को लक्षणाध्यक्ष कहा गया है। उक्त अधिकारी को यह पदवी संभवत: इसलिये मिली थी कि वह सिक्कों पर लक्षण अंकित करता था। जान पड़ता है कि यह बात उस समय के सिकों की ढलाई के संबंध की है जब कि सिकों पर शासक की मूर्ति की कौन कहे, उसका नाम तक अंकित नहीं होता अतः कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार लक्षण राज- कीय अथवा राजचिह्न है। मैं तो यह समझता हूँ कि ये अंक वही चिह्न है जो समय समय पर बराबर बदलती रहने- वाली सरकारें अथवा राज्य धारण किया करते थे। जब कोई नया शासक अथवा शासकों का समूह निर्वाचित होता था, तब वह अपना कोई विशिष्ट अंक निर्धारित करता था; और जब वह अधिकारच्युत हो जाता था, तब उसका अंक परित्यक्त कर दिया जाता था। हिंदू धर्मशास्त्रों में हमें दस्तखत या हस्ताक्षर के लिये हस्तांक शब्द मिलता है। कालिदास ने गीत के संबंध में गोत्रांक शब्द का व्यवहार किया है जिसका अर्थ है, वह गीत जिसमें उसके बनानेवाले का नाम भो हो। -प्राड्विवाकादि-हस्तांक मुद्रित राजमुद्रया। वीरमित्रोदय में उद्धत वृद्ध वशिष्ठ का वाक्य, पृ० २९५ (जीवानंदवाला संस्करण) उत्संगे वा मलिनवसने सौम्य निक्षिप्य वीणां मद्गोत्रांक विरचितपदं गेयमुद्गातुकामा । -मेघदूत २८५