पृष्ठ:हिंदू राज्यतंत्र.djvu/९७

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अपने विशिष्ट अंक अक्षर चिह्नों मे अथवा और किसी रूप में दे दिया करते थे; और अपने लक्षण किसी पशु, नदी, नगर या इसी प्रकार के किसी और पदार्थ के रूप में दे दिया करते थे। बहुत करके पशु तो लक्षण और लेख उनका अंक होता होगा। इसमें संघटन संबंधी ध्यान देने योग्य बात यह है कि संघ के संयुक्त अथवा द्वैध होने का और भी अधिक प्रमाण उनके संयुक्त चिह्नों आदि से हो जाता है । ६ ४२. इसके अतिरिक्त पाणिनि के ३, ३, ४२ वाले सूत्र से पता चलता है कि प्रजातत्र के दो विभाग हुआ करते थे-एक तो वह जिसमें उत्तर और अधरवाली राजनीतिक निकाय संघ अवस्था नहीं होती थी और दूसरे वे का एक विप्रकार है जिनमें यह अवस्था होती थी। इसका अभिप्राय हम यह समझ सकते हैं कि एक प्रजातंत्र तो ३

कात्यायन यह भी बतलाता है कि पाणिनि का ४.

१२७. वाला सूत्र नगरवाले अर्थ में घोष शब्द के लिये भी प्रयुक्त होगा। धोष- ग्रहणमपि कर्त्तव्यम् (भट्टोजी दीक्षित)। इससे हमें यह भी पता चलता है कि नगरों और म्युनिसिपैल्टियों आदि के भी इसी प्रकार के लक्षण और चिह्न प्रादि हुश्रा करते थे। कुछ स्थानों में, जैसे सोहगौरा के शिलालेख मे, इस प्रकार के लक्षण पहचाने भी गए है। फ्लीट, जरनल रायल एशियाटिक सोसायटी, १९०७. पृ० १२८ । अब व्याकरण से उसके परिभाषिक नाम लक्षण का भी अर्थ खुल गया। 1 संघे चानौत्तराधर्ये ( ३. ३. ४३.) सूत्र ३. ३. ८६. भी इसी के साथ मिलाकर पढ़ना चाहिए। इस अंतिम सूत्र में यह बत-