सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/१०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

5 कर्तव्य-पालन परोऽपि हितवान्वन्धुबन्धुरप्यहितः परः । . O . भलाई करने वाला पराया भी भाई समान होता है । और भाई भी यदि अहित चाहे तो शत्रु ही है। ० ० एक दिन राजा शूद्रक की राजसभा में वीरवर नाम का एक राजकुमार उपस्थित हुआ । राजा ने उससे सप्रेम पूछा : कहो राजकुमार, तुम कौन-से देश से, और राजसभा में किस कारण से पधारे ? राजकुमार . महाराज, मेरा नाम वीरवर है । मै आपकी कुछ सेवा करना चाहता हूँ। अतः कृपया आप मुझे अपना सेवक स्वीकार करे। राजा : तुम कितना वेतन लोगे राजकुमार ! वीरवर : पाँच सौ सुवर्ण मुद्रा प्रतिदिन लूंगा। राजा : तुम्हारी सेवा की सामग्री क्या है ? वीरवर : महाराज, केवल दो वाहू और एक तलवार । राजा : यह सम्भव नही है । ( ११० )