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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/३६

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मिमलाम ४१ दुःख समाप्त भी नही हो पाता कि दूसरा सामने आकर खड़ा हो जाता है। इसी भाँति सब एक ही हृदय से देव को कोसने लगे । कुछ समय तक विचार करने और सोचने के उपरान्त लघुपतनक वोला : मित्रो, इस प्रकार विलाप करने से कुछ लाभ नही होगा। आओ, मिलकर मित्र को छुड़ाने का प्रयल करें। तीनों ने लघुपतनक का कहना स्वीकार किया और चित्रांग ( हिरण ) एक सरोवर के तट पर पहुंचकर अपने को मृतवत् दिखाता हुआ लेट रहा । कौआ उसके शरीर पर अपनी चोंच मारने लगा। उसी मार्ग से जाते हुए शिकारी ने हिरण को देखते ही हाथ के कछुए को वहीं पृथ्वी पर सरोवर के तट पर रख दिया और कैची लेकर हिरण की ओर बढ़ा। इतने में ही झाड़ी मे छिपे हिरण्यक (चूहे) ने कछुए के बन्धन काट दिये और कछुआ उसी समय शीघ्रता से उछल-उछलकर सरोवर में घुस गया। उधर शिकारी को अपनी ओर आता देखकर हिरण भी एक ही छलांग में शिकारी के पजे से बाहर हो गया । एक को छोड़कर दूसरे को पाने की लालसा करने वाला शिकारी अपनी करनी को कोसता हुआ शहर की ओर चल दिया । मन्थर आदि मित्र भी समस्त मापदाओं से मुक्त होकर वहाँ सानन्द रहने लगे। 11 X x x कथा सुनने के उपरान्त राजपुत्र बोले : गुरुदेव, आपकी कृपा से इस नीतिपूर्ण कहानी को सुनकर हमें प्रसन्नता हुई। विष्णुशर्मा : तुम्हारी ही भांति भगवान् सवको सुख और शान्ति प्रदान करे । ॥ पहला खंड समाप्त ॥