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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/६३

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लोभ का फल. अति लोभो न कर्तव्यः c ० D वहुत लोभ नही करना चाहिए। . o e एक बार कोई वणिक अपने घर से निकल पड़ा। वह मलय- गिरि पर पहुंचा और वहाँ वारह वर्ष तक व्यापार करता रहा। एक दिन वह अपनी सारी सम्पत्ति लेकर इस नगर में चला आया । यहाँ वह जिस स्थान पर ठहरने गया, वह एक वेश्या का था। वेश्या के आंगन में एक कठपुतली थी जिसके मस्तक पर एक वहुमूल्य मणि सुशोभित थी । लोभी बनिए का मन उस मणि को लेने के लिए ललचाया। वह रात को उठा और उस कठपुतली की मणि को निकालने लगा। अचानक उसी समय कठपुतली ने उसे अपनी दोनों भुजाओं से जकड़ लिया। कठपुतली ने उसे इतनी जोर से पकड़ा कि वह चिल्लाने लगा। उसकी चीख सुनकर वेश्या भी वहीं आगई और वोली : श्रीमान् जी, आप मलयगिरि से आ रहे हैं। जितना भी