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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/९५

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१०० हितोपदेश के कारण कौआ भला कव यह सब देख सकता था? वह अपने स्थान से उड़ा और ठीक शिकारी के मुंह के ऊपर जाकर उसने विष्टा कर दी। स्वयं वहाँ से उड़ गया । इस कुकृत्य शिकारी को नीद टूट गई। पर हंस अपने स्थान से न उठा । वह सोचने लगा : मै तो शिकारी के साथ उपकार कर रहा था, उसका अपकारी तो कौआ है। अतः वह मुझे क्यों मारने लगा। हंस इस प्रकार सोच ही रहा था कि शिकारी ने मुँह उठाकर ऊपर देखा । हंस को ठीक अपने मुँह पर बैठा देखकर उसने उसको ही अपना अपराधी समझा। क्रोध में आकर शिकारी ने एक ही तीर से हंस को मारकर पृथ्वी पर गिरा दिया । इतना कहकर तोता वोला : महाराज, अव कौए और बटेर की कहानी सुने !