[ ४ ] बड़थ्वाल को अप्रकाशित रचनाओं को प्रकाशित करने, उनके द्वारा संगृहीत, मुद्रित एवं प्राचीन हस्तलिखित पुस्तकों को सुरक्षित रखने और उनके परिवार की आर्थिक सहायता करने की वे सभी बातें थीं जिन्हें वे लोग सहर्ष चाहते थे । अतः श्री नैथानीजी ने श्री भक्तदर्शन जी के साथ उपयुक्त समस्त सामग्री को टटोलकर उसकी सूची बनाई और संगृहीत मुद्रित-ग्रंथ तथा डाक्टर बड़थ्वाल को बहुत सी रचनाएँ साथ लेते गये। उन्होंने ट्रस्ट का काम प्रारंभ कर दिया था और कुछ निबन्ध बाबू सम्पूर्णानन्द जी को सम्पादन करने के निमित्त दे दिये थे जो काशी विद्यापीठ से “योगप्रवाह" के नाम से प्रकाशित हुए। इतना सब बिना किसी लिखा-पढ़ी के हुआ था परन्तु कुछ दिनोंपरांत जब हिंदी साहित्य सम्मेलन से अपने के लिए 'जोगेश्वरीवाणी' की मांग आई और यह बहुत खोजने पर भी न मिली तो हमारे कान खड़े हुए तथा हमें संदेह हुा । डा० बड़थ्वाल की वह भी एक महत्वपूर्ण कृति थी जिसको उन्होंने गम्भीर अध्ययन और बहुत खोज के पश्चात् लिखा था। उसकी दूढ़ सबसे पहले सामग्री की जाँच पड़ताल करने और उसकी सूची बनाने के समय ही कर ली गई थी। उस समय उसके खो जाने की कोई भी चर्चा इन लोगों ने नहीं की थी, परन्तु जब उनसे . उस पुस्तक को सम्मेलन में भेजने के लिए कहा गया तो वे इधर-उधर की बात मिलाने लगे। इससे हमें अत्यंत निराशा हुई और हमें उनकी उत्तरदायित्व-हीनता का परिचय मिला । ऐसी दशा में हम यह भी : नहीं कह सकते कि डा० बड़थ्वाल को कितनी सामग्री नष्ट हो गई है। हमने तब से उक्त ट्रस्ट की प्राशा छोड़ दी और डा० बड़थ्वाल की शेष सामग्री को अलग से ही प्रकाशित करने का निश्चय किया। "योगप्रवाह" के सम्बन्ध में भी काशी विद्यापीठ से पत्र-व्यवहार किया गया जिसके फलस्वरूप वहाँ के सहृदय अधिकारियों ने डा० बड़थ्वाल की पत्नी का ही उस पर स्वत्व स्वीकार किया। इतना सब लिखने
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