बड़वाल की मूल कृति को उसके तुल्य ही हिंदी में भी उत्तम बनाने का भरसक उद्योग किया गया है । आशा है विज्ञ पाठक इसका प्रादर 'कर हमारा परिश्रम सफल करेंगे। पुस्तक को आकर्षक सजधज के साथ प्रकाशित करने में और उसको मुद्रणकला के आधुनिकतम उच्चस्तर पर शुद्धतापूर्वक छापने में 'अवध पब्लिशिंग हाउस' के अध्यक्ष श्री भृगुराज जी भार्गव ने जो परिश्रम किया है वह अत्यन्त सराहनीय है। इसके अतिरिक्त उन्होंने डा० बड़थ्वाल की समस्त अप्रकाशित पुस्तकों और लेखों को भी प्रकाशित करने का भार अपने ऊपर लेकर और उनके परिवार को बिना किसी संकोच के अग्रिम आर्थिक सहायता प्रदान कर जिस उदारता का परिचय दिया है वह कभी नहीं भुलाई जा सकेगी। डा० बड़थ्वाल के स्वर्गस्थ हो जाने पर उनकी अप्रकाशित रचनाओं को छापने का एक कठिन उत्तरदायित्व हमारे ऊपर आ पड़ा था, परन्तु श्री भार्गव जी की कृपा से उसे निभाना अब हमारे लिए बहुत सरल हो गया है। प्रस्तुत पुस्तक के प्रूफ देखने तथा अनुवादित लेख की शुद्धतापूर्वक प्रतिलिपि करने में श्री रामसहाय पाण्डेय 'चन्द्र' ने विशेष परिश्रम किया है, अतः वे भी हमारे धन्यवाद के पात्र है। यहाँ थोड़ा सा उल्लेख "डा० बड़थ्वाल स्मारक ट्रस्ट" का भी कर देना आवश्यक है। उसके विज्ञापनों से बहुत से लोगों में अभी यह धारणा बनी हुई है कि डाक्टर बड़थ्वाल की अप्रकाशित रचनाओं को प्रकाशित करने का भार उसने अपने ऊपर ले लिया है, परन्तु वास्तव में बात ऐसी नहीं है । डाक्टर बड़थ्वाल की मृत्यु के पश्चात् शीघ्र ही उनके परम विश्वासपात्र और निकटस्थ सम्बन्धी श्री ललिताप्रसाद जी नैथानी ने उक्त ट्रस्ट की एक आकर्षक योजना उनके कुटुंबियों के सम्मुख प्रस्तुत की थी जिसने उन्हें मोह लिया था। उसमें डाक्टर
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