३८ हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय ॐ अर्धनाम अखंड छाया, प्राण पुरुष आवे न जाया । मरे न पिंड' थके न कात्र, सद्गुरु प्रताप हृदय समाय । शब्दस्वरूपी श्रीगुरु राघवा- नंद जी ने श्री रामानंद जी . सुनाया । भरे भंडार काया बाढ़े त्रिकुटी अस्थान जहाँ बसे श्री मालिग्राम । ॐकार हाहाकार सुनती सुनती संसे मिटे ॥ इति अमरबीज मंत्र ॥ १७ ॥ इसमें योग की त्रिकुटी में वैष्णव लाशिग्राम विराजमान हैं। यह ग्रंथ चाहे स्वयं रामानंद जी का न हो, परंतु इससे इतना अवश्य प्रकट हो जाता है कि उन्होंने अपने शिष्यों को वैष्णव धर्म के सिद्धांतों के साथ- साथ योग की भी शिक्षा दी थी। इसीलिए शायद उनके कुछ शिष्य अवधूत कहे जाते थे। रामानंदी संप्रदाय में रामानंद जी महायोगी यथार्थ ही माने जाते हैं। उनके ग्रंथों में से रामाचंन-पद्धति और वैष्णवमताज-भास्कर देखने में आये हैं। ये ग्रंथ उपासना-परक हैं । प्रो. विल्सन ने वेद पर उनके एक संस्कृत भाष्य की बात लिखी है। 'आनंद भाष्य' नाम से वेदांतसूत्र का एक भाष्य संप्रदायवालों की ओर से प्रकाशित हुआ है परंतु अभी उसकी निष्पक्ष जाँच नहीं हो पाई है। उन्होंने हिंदी में भी कुछ रचना की है। उनकी एक कविता आदि ग्रंथ में संगृहीत है जो आगे चलकर मूर्ति पूजा के संबंध में उदाहृत को गई है। उसमें वे निराकारोपासना का उपदेश करते दीखते हैं। मंदिर में की पत्थर को मूर्ति और तीर्थ का जब उन्होंने अनावश्यक से माने हैं, परंतु बैरागी पंथ में उन्होंने शालिग्राम को पूजा का विधान किया। उनकी एक और कविता आचार्य श्यामसुन्दर दास ने अपने रामावत संप्रदाय वाले निबंध में छपवाई है, जिसमें हनुमान की स्तुति की गई है। रजबदास के संग्रह ग्रन्थ सर्वागी में उनका एक और पद संगृहीत है जो यहाँ दिया जाता है-
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